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स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत: डिलीवरी के बाद एंबुलेंस की जगह निजी गाड़ियों का सहारा

  स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत: डिलीवरी के बाद एंबुलेंस की जगह निजी गाड़ियों का सहारा: रायपुर :  राज्य के सबसे बड़े अंबेडकर अस्पताल समेत सभी सर...

 स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत: डिलीवरी के बाद एंबुलेंस की जगह निजी गाड़ियों का सहारा:

रायपुर : राज्य के सबसे बड़े अंबेडकर अस्पताल समेत सभी सरकारी अस्पतालों में एक गंभीर समस्या लगातार देखने को मिल रही है। सरकार के नियमों के अनुसार, डिलीवरी के बाद नई माताओं और गंभीर मरीजों को घर छोड़ने के लिए सरकारी एंबुलेंस की सुविधा मिलनी चाहिए, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। मरीजों और उनके परिजनों को निजी गाड़ियों, ऑटो रिक्शा और कभी-कभी तो पैदल ही घर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।


सरकारी आदेश, लेकिन ज़मीनी अमल नहीं:

स्वास्थ्य विभाग का स्पष्ट नियम है कि गर्भवती महिलाओं और गंभीर मरीजों को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद सुरक्षित रूप से घर तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की सुविधा दी जाए। बावजूद इसके, अस्पतालों में एंबुलेंस सेवा या तो अनुपलब्ध रहती है या फिर कर्मचारियों की लापरवाही के कारण इसका लाभ मरीजों तक नहीं पहुंच पाता।


परिजन बोले- मजबूरी में लेना पड़ता है ऑटो और टैक्सी:

अस्पताल के बाहर मौजूद मरीजों के परिजनों का कहना है कि जब एंबुलेंस नहीं मिलती, तो उन्हें मजबूरन महंगे किराए पर ऑटो या टैक्सी करनी पड़ती है। कई मामलों में आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को कर्ज लेकर या उधार मांगकर निजी वाहन का इंतजाम करना पड़ता है।


स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी:

इस मामले पर जब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से बात की गई, तो उन्होंने सिर्फ आश्वासन देने की बात कही। अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही इस समस्या का समाधान निकाला जाएगा, लेकिन मरीजों और उनके परिजनों की परेशानी जस की तस बनी हुई है।


क्या सरकार उठाएगी ठोस कदम?

राज्य सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, लेकिन जब इनका सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं होता, तो आम जनता को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इस गंभीर समस्या का संज्ञान लेकर मरीजों को उनके अधिकार की सुविधाएं दिलाने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी, या फिर यह व्यवस्था सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएगी?


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